अनुच्छेद 51a (Article 51A in Hindi) – मूल कर्तव्य
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह–
- संविधान का पालन करे और उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का आदर करे।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे; और उन का पालन करे।
- भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
- देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे; जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो; ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उस का परिरक्षण करे।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अंतर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं; रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे; जिस से राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले।
- यदि माता-पिता या संरक्षक है; छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करे।
व्याख्या
भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों का प्रावधान 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से जोड़ा गया। इनका उद्देश्य नागरिकों को यह याद दिलाना है कि उनके अधिकारों के साथ कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। अनुच्छेद 51(क) के तहत, मूल कर्तव्यों को संविधान के भाग-IV(क) में शामिल किया गया। यह प्रावधान भारतीय नागरिकों को नैतिक और सामाजिक दायित्वों की ओर प्रेरित करता है।
मूल कर्तव्यों का ऐतिहासिक संदर्भ
- रूसी संविधान से प्रेरणा: भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों की प्रेरणा पूर्व सोवियत संघ के संविधान से ली गई। सोवियत संघ और अन्य समाजवादी देशों में नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को समान महत्व दिया गया। रूसी संविधान में पहले से यह मौजूद था कि नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रता उनके कर्तव्यों के पालन से अविभाज्य हैं।
- जापानी संविधान: प्रमुख लोकतांत्रिक देशों (अमेरिका, फ्रांस, कनाडा आदि) के संविधानों में मूल कर्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। हालांकि, जापानी संविधान नागरिकों के कर्तव्यों को मान्यता देता है।
स्वर्ण सिंह समिति और उसकी सिफारिशें
1976 में सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया गया, ताकि मूल कर्तव्यों की आवश्यकता और महत्व पर सिफारिशें तैयार की जा सकें।
मुख्य सिफारिशें:
- संविधान में मूल कर्तव्यों का एक अलग खंड जोड़ा जाए।
- नागरिकों को उनके अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के पालन के लिए भी प्रेरित किया जाए।
- संसद को अधिकार हो कि कर्तव्यों के उल्लंघन पर दंड का प्रावधान कर सके।
- कर अदायगी को भी नागरिकों का एक कर्तव्य माना जाए।
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशें जो लागू नहीं की गईं:
- संसद द्वारा मूल कर्तव्यों का उल्लंघन करने पर आर्थिक दंड या सजा का प्रावधान।
- कर्तव्यों के उल्लंघन को मूल अधिकारों के क्रियान्वयन का आधार बनाना।
42वें संविधान संशोधन के तहत शामिल मूल कर्तव्य
अनुच्छेद 51(क) के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह:
- संविधान और उसके आदर्शों का पालन करे तथा राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का सम्मान करे।
- स्वतंत्रता संग्राम के उच्च आदर्शों को बनाए रखे।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे।
- देश की रक्षा के लिए तत्पर रहे।
- धार्मिक, भाषाई या सामाजिक भेदभाव से परे समानता और भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे।
- महिलाओं के सम्मान को बनाए रखे और उनके खिलाफ प्रथाओं का त्याग करे।
- हमारी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करे।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करे और प्राणियों के प्रति दया का भाव रखे।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सुधार की भावना को बढ़ावा दे।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
- बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराना: 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा दिलाना। (यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन, 2002 के तहत जोड़ा गया।)
मूल कर्तव्यों (अनुच्छेद 51a) की विशेषताएं
- नैतिक और कानूनी प्रकृति: इनमें से कुछ कर्तव्य नैतिक हैं, जैसे उच्च आदर्शों का पालन, जबकि कुछ नागरिक कर्तव्य हैं, जैसे राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान।
- भारतीय परंपरा पर आधारित: ये कर्तव्य भारतीय परंपराओं, सांस्कृतिक मूल्यों और समाजवादी आदर्शों से प्रेरित हैं।
- केवल नागरिकों पर लागू: मूल अधिकारों के विपरीत, ये कर्तव्य केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होते हैं, विदेशियों पर नहीं।
- गैर-न्यायोचित: इन कर्तव्यों का सीधे तौर पर न्यायालय में पालन करवाना संभव नहीं है। हालांकि, संसद इन्हें लागू करने के लिए कानून बना सकती है।
मूल कर्तव्यों की आलोचना
- अधूरी सूची: इसमे मतदान, कर अदायगी, और परिवार नियोजन जैसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों को शामिल नहीं किया गया।
- अस्पष्टता: “वैज्ञानिक दृष्टिकोण,” “उच्च आदर्श,” आदि शब्दों की व्याख्या मुश्किल है।
- गैर-न्यायोचित प्रकृति: इन कर्तव्यों के उल्लंघन पर कोई सीधा कानूनी प्रतिबंध नहीं है, जिससे इन्हें “नैतिक आदेश” की तरह देखा जाता है।
- प्रावधान की व्यवस्था: इन्हें भाग-III (मूल अधिकारों के साथ) रखने के बजाय भाग-IV(क) में शामिल करना इन्हें अप्रभावी बनाता है।
मूल कर्तव्यों का महत्व
- नागरिकों को जागरूक करना: ये कर्तव्य नागरिकों को उनके देश, समाज, और अन्य नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराते हैं।
- राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को रोकना: ये कर्तव्य राष्ट्रध्वज जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसी गतिविधियों को हतोत्साहित करते हैं।
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा: ये कर्तव्य नागरिकों में समरसता और समानता की भावना को मजबूत करते हैं।
- कानून निर्माण में सहायक: अदालतें विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिक वैधता का परीक्षण करते समय इन कर्तव्यों का संदर्भ ले सकती हैं।
वर्मा समिति की सिफारिशें (1999)
वर्मा समिति ने मूल कर्तव्यों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए:
- राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम (1974): संविधान, राष्ट्रीय ध्वज, और राष्ट्रीय गान के अनादर को रोकता है।
- सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम (1955): जाति और धर्म के आधार पर अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC): राष्ट्रीय अखंडता के खिलाफ बयानबाजी और गतिविधियों को अपराध घोषित करता है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972): पर्यावरण और जैव विविधता की रक्षा के लिए उपाय करता है।
मूल कर्तव्य भारतीय संविधान में नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को प्रतिबिंबित करते हैं। आलोचनाओं के बावजूद, ये कर्तव्य नागरिकों को उनके अधिकारों के साथ जिम्मेदारियों का एहसास कराते हैं। यह प्रावधान राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक संरक्षण, और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देने में सहायक है।
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Source : – भारत का संविधान