कोसी, गंडक और सोन परियोजना:- बिहार में नहर सिंचाई का प्रमुख साधन है। राज्य के कुल क्षेत्रफल के 28.41% पर नहरों से सिंचाई की जाती है। राज्य में दो प्रकार की नहरों से सिंचाई की जाती है– सदाबाही नहरें और मौसमी नहरें। बिहार में जल संसाधन के समुचित उपयोग हेतु नहर सिंचाई के लिए दो प्रकार की नीतियाँ अपनाई गई हैं –
- बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजना की नहरें
- सिंचाई नहर (कमांड क्षेत्र सिंचाई योजना)
बिहार में प्रमुख बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजना–
- कोसी परियोजना,
- गंडक परियोजना
- सोन घाटी परियोजना
कोसी परियोजना
यह भारत और नेपाल सरकार की संयुक्त परियोजना है। इस योजना के निर्माण के लिए 1954 में नेपाल के साथ समझौता से किया गया, जिसमें 1961 ई. में संशोधन किया गया। इसका निर्माण कार्य 1955 ई. में प्रारंभ किया गया था तथा 1963 ई. में बनकर तैयार हुई। इस परियोजना के निर्माण का मुख्य उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, मलेरिया उन्मूलन, भूमि संरक्षण आदि है।
कोसी नदी चतरा गार्ज के पास पर्वत को काटकर मैदान में प्रवेश करती है। इस नदी पर अनेक बाँध एवं तटबंध निर्मित हैं जिनसे अनेक नहरें निकाली गयी हैं। हनुमान नगर (नेपाल), जो बिहार की सीमा पर स्थित है, में कक्रीट बाँध का निर्माण किया गया है। इस बाँध की लंबाई 1140 मीटर है। कोसी नहर में दो प्रमुख नहर प्रणाली विकसित हुई हैं –
- पूर्वी कोसी नहर प्रणाली
- पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली
पूर्वी कोसी नहर प्रणाली– इस नहर की लंबाई 44 किलोमीटर है। यह नेपाल एवं बिहार के मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों में सिंचाई की जाती है। पूर्वी कोसी नहर पर कटैया में 20 मेगावॉट विद्युत उत्पादन का केन्द्र स्थापित है। पूर्वी नहर प्रणाली से 5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। इसकी 4 शाखाएँ हैं —
- मुरलीगंज नहर, लंबाई — 64 किलोमीटर
- जानकीनगर नहर, लंबाई — 82 किलोमीटर
- पूर्णिया (बनमंखी) नहर, लंबाई — 64 किलोमीटर
- अररिया नहर, लंबाई — 52 किलोमीटर
पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली– इस नहर की लंबाई 115 किलोमीटर है। इस नहर से मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर आदि जिलों में सिंचाई की जाती है। इस नहर प्रणाली से 3.25 लाख भूमि पर सिंचाई कार्य किया जाता है।
गंडक परियोजना
गंडक नदी परियोजना भारत सरकार के सहयोग से बिहार तथा उत्तर प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। 1959 ई. के समझौते के आधार पर नेपाल को भी इसका लाभ दिया जा रहा है। इस परियोजना के अन्तर्गत वाल्मीकि (बिहार) में बाँध का निर्माण त्रिवेणी घाट नामक स्थान पर 1969-70 ई. में किया गया। बाँध का आधा भाग बिहार में तथा आधा भाग नेपाल में है। इस परियोजना के अंतर्गत दो प्रमुख नहरों का निर्माण किया गया है –
- पूर्वी त्रिवेणी नहर
- पश्चिमी त्रिवेणी नहर
पूर्वी त्रिविणी नहर:- इसे तिरहुत नहर भी कहते हैं, इसकी कुल लंबाई 293 किलोमीटर है। इस प्रणाली से 6.6 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। इस नहर से पूर्वी चम्पारण, पश्चिम चम्पारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर आदि जिलों में सिंचाई होती है। इस नहर से सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने वाला जिलों पश्चिमी चम्पारण है।
पश्चिमी त्रिवेणी नहर:- इसकी कुल लम्बाई 200 किलोमीटर है, जिसका नेपाल में 19 किलोमीटर, उत्तर प्रदेश में 112 किलोमीटर तथा बिहार में 69 किलोमीटर भाग है। इस नहर को सारण नहर भी कहते हैं क्योंकि इससे सिंचित जिले सारण प्रमण्डल के गोपालगंज, सारण, सीवान हैं। इस नहर प्रणाली से 4.84 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है।
गंडक परियोजना के अन्तर्गत दो और नहर पूर्वी नेपाल नहर और पश्चिमी नेपाल नहर स्थित हैं जो नेपाल में स्थित है। पश्चिम नेपाल नहर पर ही नेपाल में सूरजपुरा में जल विद्युत केंद्र स्थापित है जबकि पूर्वी नेपाल नहर पर वाल्मीकि नगर में जल विद्युत केन्द्र स्थापित है। इन दोनों जल विद्युत केन्द्रों की उत्पादन क्षमता 15-15 मेगावॉट है।
सोन परियोजना
बिहार की प्रथम वृहद सिंचाई परियोजना सोन परियोजना का निर्माण 1874 ई. में डेहरी के पास बारून नामक स्थान पर बाँध बनाकर किया गया था। इस बाँध की लंबाई 3801 मीटर तथा ऊँचाई 2.44 मीटर है। यह सिंचाई परियोजना बिहार के सबसे सूखाग्रस्त क्षेत्र दक्षिणी-पश्चिमी बिहार को सिंचित करने के लिए बनायी गई थी जिसका लाभ भी प्राप्त हुआ है। वर्तमान समय में यह क्षेत्र बिहार का अन्न भण्डार बन चुका है। 1968 ई. में इन्द्रपुरी में 14010 मीटर लंबे एक बैराज का निर्माण किया गया। डेहरी के पास से सोन नदी से दो नहरें निकाली गयी है –
- पूर्वी सोन नहर
- पश्चिमी सोन नहर
पूर्वी सोन नहर:- जिसकी कुल लंबाई 130 किलोमीटर है। यह बारून से निकलकर पटना तक जाती है। इस नहर से लगभग 2.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। इस नहर द्वारा औरंगाबाद, गया, जहानाबाद, अरवल और पटना जिलों में सिंचाई होती है।
पश्चिमी सोन नहर:- यह सोन नहर के डेहरी के पास से निकलती है। इस नहर से रोहतास, कैमूर, बक्सर, भोजपुर आदि जिलों में सिंचाई होती है। पश्चिमी नाहर द्वारा लगभग 3 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सिंचाई की जाती है। सोन नहर प्रणाली पर 2 जल विद्युत् केंद्र स्थापित किये गये हैं –
- डेहरी जल विद्युत् केंद्र – 6.6 मेगावॉट
- बारुन जल विद्युत् केंद्र – 3.3 मेगावॉट