द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) 1 सितंबर 1939 ईo को प्रारंभ हुआ था। माना जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध की पृष्टभूमि पहले विश्व युद्ध के समापन के साथ ही बन गयी थी। जब 1931 में जापान ने मंचुरिया छीन लिया था। इटली ने 1935 में एबीसनिया में घुस कर उसे हरा दिया। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) के बीज वर्साय की संधि मे ही बो दिए गए थे। जिस प्रकार का अपमान जनक व्यवहार जर्मनी के साथ किया उसे जर्मन जन मानस कभी भी भूल नहीं सका। जर्मनी को इस संधि पर हस्ताक्षर करने को विवश कर दिया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) होने के कारण
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप में तानाशाही शक्तियों का उदय और विकास हुआ। इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर तानाशाह बन बैठे। प्रथम विश्व युद्ध में इटली मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ा था परंतु पेरिस शांति सम्मेलन में उसे कोई खास लाभ नहीं हुआ। इससे इटली में अंसतोष की भावना जगी इसका लाभ उठा कर मुसोलिनी ने फासीवाद की स्थापना कर सारी शक्तियों अपने हाथों में केंद्रित कर ली। वह इटली का अधि नायक बन गया। यही स्थिति जर्मनी में भी थी।
हिटलर ने नाजीवाद की स्थापना की तथा जर्मनी का तानाशाह बन बैठा। मुसोलिनी और हिटलर दोनों ने आक्रामक नीति अपनाई दोनों ने राष्ट्र संघ की सदस्यता त्याग दी तथा अपनी शक्ति बढ़ाने में लग गए। उनकी नीतियों ने द्वितीय विश्व युद्ध को अवश्य भावी बना दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण विगत वर्षों मे चल रही कई समस्यों का परिणाम था । लेकिन मुख्य कारणों कि चर्चा यहाँ कि गई है ।
कारण 1:- यूरोपीय गुट बंदी
जर्मनी की बढती शक्ति से आशंकित होकर यूरोपीय राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए गुटों का निर्माण करने लगे। इसकी पहल सबसे पहले फ्रांस ने की। उसने जर्मनी के इर्द-गिर्द के राष्ट्रों का एक जर्मन विरोधी गुट बनाया। जर्मनी और इटली ने एक अलग गुट बनाया। जापान भी इस में सम्मिलित हो गया। इस प्रकार जर्मनी इटली और जापान का त्रिगुट बना। यह राष्ट्र धुरी राष्ट्र के नाम से विख्यात हुए। फ्रांस इंग्लैंड अमेरिका और सोवियत संघ का अलग ग्रुप बना यूरोपीय राष्ट्रों की गुट बंदी ने एक दूसरे के विरुद्ध आशंका घृणा और विद्वेष की भावना जगा दी।
कारण 2:- साम्राज्यवादी प्रवृत्ति
द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) का प्रमुख कारण साम्राज्यवाद बना। प्रत्येक साम्राज्यवादी शक्ति अपने साम्राज्य का विस्तार कर अपनी शक्ति और धन में वृद्धि करना चाहता था। इससे साम्राज्यवादी राष्ट्र में प्रतिस्पर्धा आरंभ हुई।
कारण 3:- हथियार बंदी की होड़
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात साम्राज्यवादी प्रतिद्वंदिता और राष्ट्र ग्रुप के निर्माण ने पुनः हथियार बंदी की होड़ आरंभ कर दी। फ्रांस ने अपनी सीमा पर मैगिनो लाइन का निर्माण किया और ज़मीन के भीतर मजबूत किला बंदी कि जिससे कि जर्मन आक्रमण को फ्रांस की सीमा पर ही रोका जा सके। जवाब में जर्मनी ने अपनी पश्चिमी सीमा को सुदृढ़ करने के लिए सीजफ्रेड लाइन बनाई। इन सैनिक गतिविधियों ने युद्ध को अवश्य भावी बना दिया।
कारण 4:- विश्व आर्थिक मंदी का प्रभाव
1929-30 की विश्व आर्थिक मंदी ने भी द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) में योगदान किया। इसके परिणाम स्वरूप उत्पादन घट गया। बेरोजगारी और भुखमरी बढ़ गई। उद्योग धंधे कृषि व्यापार सभी पर आर्थिक मंदी का बुरा प्रभाव पड़ा। जर्मनी की स्थिति सबसे बुरी थी। हिटलर ने इस स्थिति के लिए वर्साय की संधि को उत्तरदायी बताया। इससे उसकी शक्ति में वृद्धि हुई और वह तानाशाह बन बैठा।
कारण 5:- तुष्टीकरण की नीति
तुष्टीकरण की नीति द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) का एक कारण बनी। किसी भी यूरोपियों राष्ट्र ने जर्मनी, इटली की आक्रामक नीति को रोकने का प्रयास नहीं किया। 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद साम्यवाद की बढ़ती शक्ति से इंग्लैंड और फ्रांस ख़तरा महसूस कर रहे थे। दूसरी तरफ जर्मनी इटली और जापान धुरी राष्ट्र संवाद के विरोधी थे। इंग्लैंड और फ्रांस चाहते थे कि फांसीवादी शक्तियों धुरी राष्ट्र साम्यवाद का विरोध करें और वह सुरक्षित रहें। इस तुष्टीकरण की नीति की प्रति मूर्ति ब्रिटिश प्रधानमंत्री चेंबरलेन था।
कारण 6:- द्वितीय विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व
अधिकांशतः इतिहासकारों का मानना है कि हिटलर पोलैंड पर अधिकार कर प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय का बदला लेना चाहता था। साथ ही पोलैंड और सोवियत संघ पर अधिकार कर वह साम्यवाद के प्रसार को रोकना चाहता था। इसलिए हिटलर की नीतियों ही मुख्य रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के लिए उत्तरदायी बनी।
कुछ विद्वानों का यह मानना है कि सोवियत संघ और जर्मनी की संधि भी युद्ध के लिए उत्तरदायी थी। सोवियत संघ को जर्मनी के साथ संधि करने की जगह पोलैंड और पश्चिमी राष्ट्रों के साथ संधि करनी चाहिए थी। इससे भयभीत होकर हिटलर शांति व्यवस्था को भंग करने का प्रयास नहीं करता।
द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) की प्रमुख घटनाएँ
- 1 सितंबर 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया गया, जिसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध का बिगुल बज उठा। इस विश्व युद्ध में रूस ने जर्मनी की सहायता की। जिसके फलस्वरूप पोलैंड पराजित हो गया जर्मनी एवं रूस ने पोलैंड को आपस में बांट लिया।
- 1 सितंबर 1939 से 9 अप्रैल 1940 तक का काल नकली युद्ध अथवा फोनी वार का काल माना जाता है क्योंकि इस अवधि में युद्ध की स्थिति बने रहने पर भी कोई वास्तविक युद्ध नहीं हुआ।
- 1940 में जर्मनी ने इंग्लैंड पर हवाई हमला कर दिया, परंतु इंग्लैंड ने इस हवाई हमले को भी विफल कर दिया।
- 9 अप्रैल 1940 को जर्मनी ने नॉर्वे तथा डेनमार्क पर आक्रमण कर उन पर अधिकार कर लिया. जून 1940 तक जर्मन सेना ने बेल्जियम और हॉलैंड के अतिरिक्त फ्रांस पर भी अधिकार कर लिया। बाध्य होकर फ्रांस को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) का अंत
1944 में पराजित होकर इटली ने आत्मसमर्पण कर दिया। इससे जर्मन शक्ति को आघात लगा। स्तालिनग्राद के युद्ध में जर्मनी को परास्त कर सोवियत सेना आगे बढ़ते हुए बर्लिन जर्मनी तक पहुंच गई। 7 मई 1945 को हिटलर को आत्मसमर्पण करना पड़ा। 6 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर परमाणु बम गिरा कर उन्हें पूर्णता नष्ट कर दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) के परिणाम
द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम प्रथम विश्व युद्ध से अधिक निर्णायक हुए। इसके सिर्फ विनाशकारी प्रभाव ही नहीं हुई, बल्कि कुछ प्रभाव ऐसी भी है जिससे विश्व इतिहास की धारा बदल गई तथा एक नए विश्व का उदय और विकास हुआ।
परिणाम 1: धन-जन का भीषण संहार
Second World War में धन-जन की अधिक क्षति हुई। इस युद्ध में दोनों पक्षों के 5 करोड़ से अधिक लोग मारे गए जिनमें सर्वाधिक संख्या सोवियत की थी। लाखों लोग बेघर हो गए जिससे पुनर्वास की समस्या बढ़ गई। लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई। घायलों की गिनती नहीं की जा सकती थी। इंग्लैंड में लगभग 2000 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति नष्ट हुई। सोवियत संघ की संपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति का चौथा भाग युद्ध की भेंट चढ़ गया।
परिणाम 2: औपनिवेशिक युग का अंत
Second World War के बाद सभी साम्राज्यवादी राज्यों को एक-एक कर अपनी उपनिवेशों से हाथ धोना पड़ा। उपनिवेशों में राष्ट्रीयता की लहर तेज़ हो गई। स्वतंत्रता आंदोलन तेज़ हो गए। एशिया के अनेक देश यूरोपीय दासता से मुक्त हो गए। भारत भी अंग्रेजी दासता से मुक्त हो गया।
परिणाम 3: फासीवादी शक्तियों का सफ़ाया
युद्ध में पराजित होने के बाद धुरी राष्ट्रों के दुर्दिन आ गए। जर्मन साम्राज्य का बड़ा भाग उससे छिन गया। इटली को भी अपने सभी अफ्रीकी उपनिवेश खोने पड़े। जापान को भी उन क्षेत्रों को वापस करना पड़ा जिन पर वह अपना अधिकार जमाए हुए था। इन राष्ट्रों की आर्थिक सैनिक स्थिति भी दयनीय हो गई।
परिणाम 4: साम्यवाद का तेजी से प्रसार
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवाद का तेजी से प्रसार हुआ। पूर्वी यूरोप के अनेक देशों एशियाई देशों चीन, उत्तर कोरिया इत्यादि देशों में साम्यवाद का प्रसार हुआ।
परिणाम 5: संयुक्त राष्ट्र की स्थापना
द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) के बाद एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता पुनः प्रतीत हुई, जिससे कि विश्व शांति बनाए रखी जा सके एवं विश्व युद्ध की पुनरावृति को रोका जा सके। अमेरिका के पहल पर 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र नामक संस्था की स्थापना की गई।
निष्कर्ष
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर यूरोप केंद्रित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था, जो पिछले पाँच सौ वर्षों से अस्तित्व में थी, लुप्त हो गई तथा महाद्वीपीय आकार लिए हुए दो महाशक्तियाँ अस्तित्व में आयीं- संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत रूस। इन्होंने क्रमशः पूँजीवादी तथा समाजवादी गुट का नेतृत्व किया तथा बाकी शक्तियाँ एक अथवा दूसरे गुट के वर्चस्व को मानने के लिए तैयार थीं, वहीं कुछ नव स्वतंत्र राष्ट्रों ने इन दोनों गुटों से पृथक होकर गुट निरपेक्ष आन्दोलन को संगठित करने का प्रयास किया। फिर इन दोनों महाशक्तियों ने अपनी जरूरत तथा दृष्टिकोण के अनुकूल नयी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना पर बल देना आरम्भ किया । उपयुक्त दोनों महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा द्वितीय विश्वयुद्ध के मध्य ही आरंभ हुई जो आज तक शीत युद्ध (Cold War) के रूप देखा जाता है ।
