अनुच्छेद 64 (Article 64 in Hindi) – उपराष्टपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
[1] उपराष्ट्रपति, राज्य सभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा:
[2] परंतु जिस किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह अनुच्छेद 97 के अधीन राज्य सभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।
व्याख्या
अनुच्छेद 64 के अनुसार, भारतीय संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि उप-राष्ट्रपति, राज्यसभा का पदेन सभापति (Ex-officio Chairman) होगा।
अनुच्छेद 64 के महत्वपूर्ण प्रावधान:
- राज्यसभा का सभापति:
- उप-राष्ट्रपति भारतीय संसद के उच्च सदन, यानी राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में कार्य करता है।
- वह राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए उत्तरदायी होता है।
- राज्यसभा का सदस्य नहीं:
- उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का सदस्य नहीं होता, लेकिन सभापति के रूप में कार्य करता है।
- अनुपस्थिति में उपसभापति का कार्यभार:
- यदि उप-राष्ट्रपति अनुपस्थित हो या अन्य कारणों से राज्यसभा की अध्यक्षता नहीं कर पाए, तो राज्यसभा का उपसभापति सभापति का कार्यभार संभालता है।
कार्य और अधिकार:
- राज्यसभा की बैठकों का संचालन करना।
- सदन के अनुशासन और प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करना।
- सदस्यों के बीच बहस को नियंत्रित करना और तटस्थ रहकर सदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाना।
- जब सदन में मत बराबर हो जाए, मतदान में निर्णायक मत (Casting Vote) का उपयोग करना।
महत्व:
उप-राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हुए, वह कार्यपालिका का हिस्सा होता है। वहीं, राज्यसभा का सभापति होने के नाते वह विधायिका का भी अभिन्न हिस्सा होता है। यह दो भूमिकाएँ उप-राष्ट्रपति के पद को भारतीय लोकतंत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती हैं।
इस प्रकार, अनुच्छेद 64 राज्यसभा में उप-राष्ट्रपति की भूमिका और उनके अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
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Source : – भारत का संविधान