अनुच्छेद 23 (Article 23 in Hindi) – मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
व्याख्या
अनुच्छेद 23 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मानव दुर्व्यापार, बेगार (बलात श्रम) और अन्य प्रकार के अनैतिक कार्यों पर रोक लगाता है। यह प्रावधान नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों पर लागू होता है और व्यक्ति को राज्य और अन्य व्यक्तियों के शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है।
मानव दुर्व्यापार का निषेध
अनुच्छेद 23 के अंतर्गत मानव दुर्व्यापार के अंतर्गत निम्नलिखित कार्यों पर रोक लगाई गई है:
- पुरुष, महिला और बच्चों की खरीद-बिक्री वस्तु की तरह।
- महिलाओं और बच्चों का अनैतिक शोषण: इसमें वेश्यावृत्ति और यौन शोषण शामिल हैं।
- देवदासी प्रथा: महिलाओं का धार्मिक रीति-रिवाजों के नाम पर शोषण।
- दास प्रथा: किसी व्यक्ति को संपत्ति के रूप में रखना और उसका शोषण करना।
इन अपराधों को रोकने के लिए सरकार ने अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1950 लागू किया।
बेगार (बलात श्रम) का निषेध
बेगार का अर्थ है बिना परिश्रमिक के किसी व्यक्ति से कार्य कराना।
- यह प्रथा भारतीय समाज में खासतौर पर उस समय प्रचलित थी जब ज़मींदार, गरीब किसानों या उधार लेने वालों से मुफ्त में काम कराते थे।
- अनुच्छेद 23 न केवल बेगार बल्कि अन्य प्रकार के बलात श्रम जैसे बंधुआ मजदूरी पर भी रोक लगाता है।
- बलात श्रम में आर्थिक बाध्यता जैसे न्यूनतम मजदूरी से कम पर काम कराना भी शामिल है।
बंधुआ मजदूरी और अन्य कानून
बलात श्रम और शोषण को रोकने के लिए निम्नलिखित कानून बनाए गए हैं:
- बंधुआ मजदूरी (निरसन) अधिनियम, 1976: बंधुआ मजदूरी की प्रथा को समाप्त करने के लिए।
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948: प्रत्येक श्रमिक को न्यूनतम वेतन प्रदान करने के लिए।
- ठेका श्रमिक (नियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970: ठेका श्रमिकों के शोषण को रोकने के लिए।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976: महिलाओं और पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान करने के लिए।
अनुच्छेद 23 में अपवाद
अनुच्छेद 23 में कुछ अपवाद भी शामिल हैं, जो राज्य को विशेष परिस्थितियों में बलात श्रम लगाने की अनुमति देते हैं:
- सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा: जैसे सैन्य सेवा या सामाजिक सेवा। इन सेवाओं के लिए राज्य को किसी प्रकार का वेतन प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होती।
- भेदभाव पर रोक: इन सेवाओं में राज्य को धर्म, जाति, वर्ग या लिंग के आधार पर भेदभाव करने की अनुमति नहीं है।
अनुच्छेद 23 का महत्व
- सामाजिक न्याय: यह अनुच्छेद समाज में समानता और शोषण-मुक्त व्यवस्था सुनिश्चित करता है।
- आर्थिक स्वतंत्रता: श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी और समान पारिश्रमिक का अधिकार देता है।
- मानवीय गरिमा का संरक्षण: सभी प्रकार के शोषण को समाप्त कर व्यक्ति की गरिमा बनाए रखता है।
अनुच्छेद 23 भारतीय संविधान का एक ऐसा प्रावधान है, जो समाज में शोषण को खत्म करने और श्रमिकों को उनके अधिकार प्रदान करने का संकल्पित है। हालांकि, इस अनुच्छेद के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए संबंधित कानूनों का सख्ती से पालन और प्रशासनिक पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
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Source : – भारत का संविधान