ज्वालामुखी (Volcano)- एक हजार वर्ष पहले की बात है जब इटली के लोगों ने विसूवियस पहाड़ ( Mount Vesuvius) के फटने के बारे में सुना था, उससे आग निकली थी। यह घटना कई साल पहले जब धुप, पाला, हवा, वर्षा इत्यादि से पहाड़ी ढालों पर हरियाली आ चुकी थी। चारों ओर धरती मुस्करा रही थी और नए नगर बस गए। पम्पियाई और हरक्युलैनियम (Herculaneum) जैसे इतिहास-प्रसिद्ध नगर उसी की तलहटी में विकसित हो रहे थे।
तभी 24 अगस्त, सन् 79 ई. दोपहर के समय में विसूवियस के मुँह से सफ़ेद धुआँ निकलने लगा। पृथ्वी का कम्पन बढ़ा और जोर की गड़गड़ाहट के साथ विस्फोट हो गया। राख, धूल और पत्थरों की वर्षा होने लगी, आकाश काले बादलों से भर गया, चारों ओर भीषण अंधेरा छा गया। नगरों के इमारतें धराशायी हो गयीं, हर जगह आग लग गई। पम्पाई में मुश्किल से 1/10 लोग (लगभग दो हजार) बच्च पाए। पहाड़ की ओर से आई कीचड़ की तरह वस्तु ने नगरों को ढक लिया। दोनों नगर पूरी तरह से बरबाद हो गए। इस तरह की घटनाएँ पृथ्वी के विभिन्न भागों में घटी हैं और आगे भी घटती रहेंगी। हम इन्हें ज्वालामुखी या ज्वालामुखी-उद्गार कह कर पुकारते हैं।
ज्वालामुखी क्या है? (What is Volcano)
ज्वालामुखी (Volcano) भूपटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है जिससे होकर पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, गैस या भाप, राख इत्यादि बाहर निकलते हैं। पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, जो ज्वालामुखी से बाहर निकलता है, भूराल या लावा (Lava) कहलाता है। यह बहुत ही गर्म और लाल रंग का होता है। लावा जमकर ठोस और काला हो जाता है जो बाद में जाकर ज्वालामुखी-चट्टान के नाम से जाना जाता है। लावा में इतनी अधिक गैस होती है कि वह एक ही बार निकल पाती है।
लावा में बुलबुले इन गैसों के निकलने के कारण हो उठते हैं। लावा का बहना बंद हो जाने पर कुछ काल तक भाप निकलते देखा जाता है। पिघली चट्टान को ऊपर लाने में ये गैसें ही सहायक होती हैं भूपटल पर कहीं कोई कमजोर परत मौजूद हो जिसे तोड़ कर, फाड़कर या छेदकर गैस लावा को ऊपर की ओर रास्ता बनाने में मदद करे। ज्वालामुखी-विस्फोट होने पर भूकंप होना स्वाभाविक है।
ज्वालामुखी विस्फोट कैसे होता है? (Volcano)
एक भूवेत्ता के शब्दों में “ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उगे हुए फोड़े हैं, ये वहीं फूटते हैं जहाँ की परत कमजोर होती है, जहाँ इन्हें कोई रास्ता मिल जाता है।” हम पृथ्वी की परत का अनुमान लगाते हैं कि वहाँ की स्थिति क्या हो सकती है। जब हम निचे गहराई तक खुदाई करते हैं तो पाते हैं कि गहराई के साथ-साथ तापक्रम बढ़ता जाता है। हमें सबसे गहरी खानों को इसी कारण वातानुकूलित (Air-conditioned) करना पड़ता है। नीचे की ओर बढ़ते हुए तापक्रम से लोगों का विश्वास था कि पृथ्वी का भीतरी भाग ठोस नहीं हो सकता, वहाँ की चट्टानें ठोस रूप में नहीं हैं बल्कि द्रव अवस्था में हैं।
भूकंप-लेखक यंत्रों की सहायता से भूकंप की लहरों का अध्ययन कर वैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि 1800 मील की गहराई तक पृथ्वी की परत द्रव अवस्था में नहीं है। पिघलने के लिए उन चट्टानों के पास जगह भी नहीं है। पृथ्वी अपने अधिक भार से उन्हें वहाँ दबाये रहती है। पिघलने में चट्टानों को फैलना पड़ता है और ऊपर की अपेक्षाकृत ठंडी परतें उन्हें इतने जोर से दबाये रहती हैं कि वे फैल नहीं पातीं, अतः पिघलने की सीमा तक गर्म होकर भी पिघलने में असमर्थ बनी रहती है।
पृथ्वी के अन्दर से निकली हुई लावा पिघली चट्टानें हैं। इसका ऊपर आने का कारण पृथ्वी की परत का दबाव कम होने से होता हो। पृथ्वी की परत ऊपर उठ गई हो, जिससे धीरे-धीरे ठंडी हो रही है, इससे दबाव कम होगा और कुछ नीचे (50-60 मील नीचे) की चट्टाने फैलकर द्रव बनने लगते हो। कई साल पहले चट्टानों में रेडियो-सक्रिय तत्त्वों का पता लगाया है। ये तत्त्व टूटकर दूसरे पदार्थों में बदल जाते हैं। इस परिवर्तन के चलते ताप उत्पन्न होता है।
मैग्मा
पृथ्वी के भीतर पिघली हुई चट्टानों को “मैग्मा (Magma)” कहा गया है। इसकी तुलना बोतल में भरे सोडावाटर से की जाती है। ढक्कन खुलते जैसे सोडावाटर मुँह की ओर दौड़ता है, उसी तरह कमजोर भूपटल पाकर गैसयुक्त लावा ऊपर आने के लिए दौड़ पड़ता है और जहाँ-तहाँ अपना रास्ता बना लेता है। तेजी से आने के कारण विस्फोट होता है और कम्पन होने लगता है। वहाँ की चट्टानें टूट-टूट कर चारों ओर बिखर जाती है, धूल, वाष्प और अन्य गैसों के बादल छा जाते हैं और लावा बह निकलता है। लावा के बहने और जमने से उलटे funnel के आकार का पर्वत बन जाता है और उसके मुँह पर गड्ढा हो जाता है जिसे क्रेटर (Crater) या ज्वालामुखी कहते हैं।
ज्वालामुखी के प्रकार (Type of Volcano)
सामान्य प्रकार से ज्वालामुखी का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है –
- सक्रिय या जाग्रत (Active Volcano)
- सुषुप्त या निद्रित (Dormant Volcano)
- मृत (Extinct Volcano)
1. सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी (Active Volcanoes)
सक्रिय ज्वालामुखी वे हैं जिनसे समय-समय पर विस्फोट होता है अर्थात् जिनसे लावा, गैस, वाष्प इत्यादि निकला करता है। नवीनतम गणना के अनुसार संसार में इनकी संख्या लगभग 1,500 है। भारत में अंडमान निकोबार के Barren Island में सक्रिय ज्वालामुखी है। संसार के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी ये हैं – हवाई द्वीप का मौना लोआ (Mauna Loa), सिसली का एटना (Mount Etna) और स्ट्राम्बोली (Stromboli volcano), इटली का विसुवियस (Italy’s Vesuvius), इक्वेडोर का कोटोपैक्सी (Ecuador’s Cotopaxi), मेक्सिको का पोपोकैटपेटल (Mexico’s Popocatepetl), कैलिफ़ोर्निया का लासेन इत्यादि।
2. सुषुप्त या निद्रित ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes)
ऐसे ज्वालामुखी जो वर्षों से शांत, स्तब्ध या सोये हुए जान पड़ते हैं पर उनके सक्रीय या जाग्रत होने की संभावना रहती है। ऐसे ज्वालामुखी बड़े खतरनाक साबित होते हैं। लोग किसी ज्वालामुखी को शांत समझकर उसकी तलहटी में बस जाते हैं पर जब किसी दिन वह विशालकाय दैत्य जागता है तो धरती हिलने लगती है, भीतर से गड़गड़ाहट की आवाज़ आने लगती है। आसपास के नगर और गाँव बर्बाद हो जाते हैं।
सन् 79 ई. का विसुवियस विस्फोट सुषुप्त ज्वालामुखी का उदाहरण था जो अपनी तलहटी में बसे पम्पयाई और हरक्यूलैनियम नगरों को निगल गया। फिर यह 17वीं शताब्दी, 19वीं शताब्दी और 20वीं शताब्दी में (सन् 1906 ई. में) जगा और अपार क्षति पहुँचा गया। जापान का फ्यूजीयामा जो संसार का सबसे सुन्दर ज्वालामुखी कहा जाता है, सुषुप्त ज्वालामुखी के अन्दर आता है।
फिलीपीन का मेयन भी एक सुन्दर ज्वालामुखी है जिसे “फिलीपीन का फ्यूजीयामा” कहा जाता है। जावा और सुमात्रा के बीच क्राकाटोआ विस्फोट (सन् 1883 ई. का) भी सुषुप्त ज्वालामुखी का ही उदाहरण है। यह ज्वालामुखी से इतने जोर का विस्फोट हुआ कि उसकी आवाज़ हजारों मील तक सुनाई पड़ी थी। समुद्र में इतनी बड़ी लहरें उत्पन्न हुई थीं कि वे पृथ्वी की परिक्रमा करने लगीं। आकाश में उससे इतनी अधिक धूल और राख फैली कि तीन वर्ष तक उड़ती रही।
3. मृत या शांत ज्वालामुखी (Extinct or Dead Volcanoes)
ऐसे ज्वालामुखी जो युगों से शांत हैं और जिनका विस्फोट एकदम बंद हो गया है। जैसे – बर्मा का पोपा, अफ्रीका का किलिमंजारो, दक्षिण अमेरिका का चिम्बराजो, हवाई द्वीप का मीनाको, ईरान का कोह सुल्तान मृत ज्वालामुखी के उदहारण हैं।