पृथ्वी, जिस पर हम रहते हैं, ‘सौरमण्डल’ का एक भाग है और सौरमण्डल आकाशगंगा का एक भाग है, तथा लाखों आकाशगंगाओं का समूह “ब्रह्मांड” (Universe) कहलाता है। अर्थात- “सूक्ष्म अणुओं से लेकर विशालकाय आकाशगंगाओं तक के सम्मिलित रूप को ‘ब्रह्मांड’ (Universe) कहते हैं।”
ब्रह्मांड (Universe) की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत जो प्रचलित हैं जिसमें एक है “बिग बैंग सिद्धांत”, इसे “विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना” (Expanding Universe Hypothesis) भी कहा जाता है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन “जॉर्ज लैमेंतेयर” ने किया। रॉबर्ट वेगनर ने 1967 में इस सिद्धांत की व्याख्या प्रस्तुत की। इसकी पुष्टि ‘डॉप्लर प्रभाव’ से भी की जा चुकी है।
इस सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड (Universe) लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व भारी पदार्थों से निर्मित एक गोलाकार सूक्ष्म पिंड था, जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म और ताप व घनत्व अनंत था, बिग बैंग की प्रक्रिया में इसके अंदर महाविस्फोट हुआ और ब्रह्मांड (Universe) की उत्पत्ति हुई। विस्फोट के फलस्वरूप अनेक पिंड अंतरिक्ष में बिखर गए जो आज भी गतिशील अवस्था में हैं। इसके साथ ही, समय, स्थान एवं वस्तु की व्युत्पत्ति हुई। (Universe)
कुछ अरब वर्ष बाद हाइड्रोजन एवं हीलियम के बादल संकुचित होकर तारों एवं आकाशगंगाओं का निर्माण करने लगे। बिग बैंग घटना के पश्चात आज से लगभग 4.5 अरब पूर्व सौरमण्डल का विकास हुआ, जिससे ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण हुआ।
“होयल” ने इस परिकल्पना के विपरीत “स्थिर अवस्था संकल्पना” के नाम से नवीन परिकल्पना प्रस्तुत की। इसके अनुसार ब्रह्मांड (Universe) का विस्तार लगातार हो रहा है लेकिन इसका स्वरूप किसी भी समय एक ही जैसा रहा है। लेकिन वर्तमान में “बिग बैंग सिद्धांत” को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है।
सौरमण्डल सम्पूर्ण ब्रह्मांड (Universe) का एक हिस्सा है। इसकी रचना ‘निहारिका’ नामक एक विशाल गैसीय पिंड से हुई है। सौरमण्डल का लगभग 99 प्रतिशत से भी अधिक द्रव्यमान सूर्य में निहित है, जबकि सारे ग्रह मिलकर शेष द्रव्यमान से बने हुए हैं।
अवधारणा
- 16वीं शताब्दी के आस-पास कैपलर ने ग्रहीय गतियों के नियमों की खोज की तथा इसने सूर्य को ग्रहीय कक्षा का केन्द्र माना।
- “हर्शेल” ने 1805 में बताया कि पृथ्वी, सूर्य एवं अन्य ग्रह आकाशगंगा का एक अंश मात्र है।
- 1920 में एडविन हब्बल ने प्रमाण दिया कि ब्रह्मांड (Universe) का विस्तार अभी भी जारी है, जिसको उन्होंने आकाशगंगाओं के बीच बढ़ रही दूरी के आधार पर सिद्ध किया।
आकाशगंगा एवं निहारिका (Galaxy & Nebula)
- मंदाकिनी के सर्वाधिक पास स्थित आकाशगंगा ‘एण्ड्रोमेडा ’ है जो सौरमण्डल से लगभग 22 लाख प्रकाश वर्ष दूर है।
- “ओरियन नेबुला” हमारी आकाशगंगा “मंदाकिनी” का सबसे शीतल तथा चमकीले तारों का क्षेत्र है।
- आकाशगंगाओं के ‘प्रतिसरण नियम’ के प्रतिपादक “एडविन हब्बल” थे। मंदाकिनी को “गैलीलियो” ने सबसे पहले देखा था।
तारे का जन्म तथा विकास (Evolution of a Star)
- तारों का जीवनकाल अत्यधिक लंबा होता है एवं विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरता है।
- यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से कम अथवा बराबर (चंद्रशेखर सीमा) है तो वह लाल दानव से ‘श्वेत वामन’ और अंततः ‘काला वामन’ में परिवर्तित हो जाता है।
- यदि तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से अधिक या कई गुना अधिक है तो तारे की मध्यवर्ती परत गुरूत्वाकर्षण के कारण तारे के केन्द्र में ध्वस्त हो जाती है। इससे निकली ऊर्जा तारे के ऊपरी परत को नष्ट कर देती है और भयानक विस्फोट होता है जिसे ‘सुपरनोवा विस्फोट’ कहते हैं।
- सुपरनोवा विस्फोट के बाद वह तारा ‘न्यूट्रान तारा’ तथा इसके पश्चात ‘ब्लैक होल’ में बदल जाता है।
तारों का रंग, तापमान एवं उम्र
तारो के रंग से उसके तापमान को ज्ञात किया जाता है। तारों द्वार मुक्त ऊष्मा के आधार पर उनकी उम्र ज्ञात की जा सकती है, जैसे-
- नीला व सफेद – युवा (आद्य तारा)
- नारंगी – प्रौढ़
- लाल – वृद्ध
- अंततः विस्फोट के बाद तारे की मृत्यु हो जाती है या वह ‘कृष्ण विवर’ बन जाता है।
Important Facts (महत्वपूर्ण तथ्य)
चंद्रशेखर सीमा (Chandrasekhar Limit)
- एस. चंद्रशेखर भारतीय मूल के अमेरिकी खगोल भौतिकविद् थे। जिन्होंने श्वेत वामन तारों के जीवन अवस्था के बारे में सिद्धांत प्रतिपादित किया।
- इसके अनुसार, 1.44 सौर द्रव्यमान ही श्वेत वामन के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा है। इसे ही ‘चंद्रशेखर सीमा’ कहते हैं।
- एस. चंद्रशेखर को संयुक्त रूप से नाभिकीय खगोल भौतिकी में ‘डब्ल्यू ए. फाउलर’ के साथ 1983 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
न्यूट्रान तारा (Neutron star)
- सुपरनोवा विस्फोट से बचे हुए केन्द्रीय भाग है जिसमे अत्यधिक घनत्व से न्यूट्रान तारों का निर्माण होता है।
- अधिक गति से चक्कर लगाने वाले न्यूट्रानों से बने तारों को “न्यूट्रान तारा” कहते हैं।
- न्यूट्रान तारे के सभी अंश न्यूट्रान के रूप में संगठित रहते हैं। यह तीव्र रेडियो तरंगे उत्सर्जित करते हैं।
- न्यूट्रान तारे को “पल्सर” भी कहा जाता है।
कृष्ण विवर (Black hole)
- कृष्ण विवर अंतरिक्ष में स्थित ऐसा स्थान है जहाँ गुरूत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि प्रकाश का परावर्तन किसी भी वस्तु से बाहर नहीं हो सकता। इसे दूरबीन से भी नहीं देखा जा सकता।
- कृष्ण विवर की पुष्टि प्रकाश के अपने पथ के विचलन के द्वारा की जाती है। कृष्ण विवर का निर्माण तब हो सकता है जब न्यूट्रान तारे में द्रव्यमान एक ही स्थान पर संकेद्रित हो जाए अथवा उसकी मृत्यु हो रही हो।
- ब्लैक होल आकार में बड़ा या छोटा हो सकता है। छोटे ब्लैक होल एक परमाणु जितने छोटे हो सकते हैं लेकिन उनका द्रव्यमान बहुत अधिक होता है।
- जिन तारों का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के तीन गुने से अधिक होता है, वे विघटित होकर अंततः कृष्ण विवर में परिणत हो जाते हैं।
नक्षत्र (Constellation)
- एक निश्चित आकृति में व्यवस्थित तारों के समूह को ‘नक्षत्र’ कहा जाता है। इनकी संख्या 27 मानी जाती है।
- यह आकाश में पृथ्वी के चतुर्दिक स्थित होते हैं एवं रात में दिखाई पड़ते हैं। कुछ प्रमुख नक्षत्र हैं – चित्रा, हस्त, विशाखा, श्रवण, धनिष्ठा, मघा, आद्र्रा, अनुराधा, रोहिणी इत्यादि।
- किसी नियत नक्षत्र के मध्यान्ह रेखा के ऊपर से उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच के समय को नक्षत्र दिवस कहते हैं। यह दिवस 23 घंटे 56 मिनट का होता है।
तारा मण्डल (Constellation)
- आकाश में कुछ तारे सुंदर आकृतियों के रूप में व्यवस्थित होते हैं। इन आकृतियों को “तारामण्डल” कहते हैं।
- इंटरनेशनल एस्ट्रोनामिकल यूनियन के अनुसार इनकी संख्या 88 मानी गई हैं।
ध्रुव तारा (Pole Star)
- उत्तरी ध्रुव पर स्थित तारे को ही ‘ध्रुव तारा’ कहते हैं। यह आकाश में हमेशा एक ही स्थान पर रहता है। यह “लिटिल बियर तारा समूह” का सदस्य है।
- सप्तर्षि मण्डल की सहायता से ध्रुव तारे की स्थिति को जान सकते हैं अर्थात सप्तर्षि मण्डल के संकेत तारों को आपस में मिलाते हुए एक काल्पनिक रेखा खींची जाए एवं उसे आगे की ओर बढ़ाया जाए तो यह ध्रुव तारे को इंगित करेगी।